राम और भरत का मिलाप।(Ram Aur Bharat ka milaap)
भरत भगवान श्री राम के छोटे भाई थे जो की राजा दशरथ और कैकेयी के पुत्र थे जब राजा भरत अपने ननिहाल गए हुए थे तब भगवान श्री राम को माता कैकेयी के द्वारा 14 वर्षों का वनवास दे दिया गया था जिसके कारण उनके पिता दशरथ की मृत्यु हो गयी। जब अपने ननिहाल कैकेय से भरत वापस अयोध्या आये तब भरत को पता चला की उनके बड़े भाई राम को 14 वर्ष का वनवास दे दिया गया है तब भरत ने चित्रकूट जाकर भगवान श्रीराम से मिलन किया और पुनः अयोध्या लाने का प्रयास किया था परन्तु भगवान श्री राम ने पिता को दिए वचन के अनुसार अयोध्या वापस नहीं आये।(Bharat ka 14 varsh vanavaas)
भरत का 14 वर्ष का वनवास।(Bharat ka 14 varsh vanavaas)
भगवान श्री राम ने भरत को आदेश दिया की आप अयोध्या का काज संभाले जिसके बाद भरत ने भगवान श्री राम की चरण पादुका को लेकर व अपने सर पर रख कर अयोध्या आये जिसके बाद भरत ने भगवान श्री राम की चरण पादुका को सिंगासन पर रखा और भगवान श्रीराम के सांकेतिक रूप में अयोध्या का राजा नियुक्त किया। और उसके बाद भरत राजसी सुख सुविधाओं को अपना ने से मना कर दिया जिसके बाद भरत ने प्रण लिया कि जिस प्रकार उनके बड़े भाई श्रीराम वन में एक वनवासी की भांति अपना जीवन व्यतीत कर रहे है उसी प्रकार वे अपना जीवन व्यतीत करेंगे व जिसके साथ-साथ अयोध्या को भी संभालेंगे। (Bharat ka 14 varsh vanavaas)
भरत ने उसके बाद अपना जीवन व्यतीत करने के लिए अयोध्या से थोड़ा दूर नंदीग्राम वन को चुना और वहां अपनी कुटिया बनाई व एक वनवासी की तरह अपने वस्त्र धारण किये व उसी कुटिया में रहने लगे जिसके बाद भरत ने अयोध्या का राजसी कार्य वन से ही शुरू किया। भरत ने स्वयं के सोने के लिए भूमि में चार से पांच फीट नीचे तक गहरा गड्डा खुदवाया क्योकि भगवान श्री राम वन में जमीन पर सोते थे क्योकि भरत का स्थान भगवान श्री राम के बाद आता था जिसके कारण भरत जमीन में गड्डा खोद कर सोते थे
हनुमान और भरत का मिलाप।(Hanumaan aur Bharat ka milaap)
जब राम-रावण युद्ध के दौरान भगवान श्री राम के छोटे भाई लछमन को मेघनाथ ने युद्ध में शक्ति बाण चला कर लछमन सहित कई बानरों को मूर्छित कर दिया था (मेघनाथ रावण का पुत्र था) लछमन के बहुत भयंकर घाव हो गया था जिसके लिए लंका के वैद्य सुषेन की सहायता ली गयी वैद्य सुषेन ने सुबह सूर्योदय से पहले तक द्रोणागिरी पर्वत से संजीवनी बूटी को लाने का ही इसका एकमात्र उपाय बताया।
यह सुनकर हनुमान इस कार्य को करने के लिए तैयार हुए जिसके बाद हनुमान जी संजीवनी बूटी लेने के लिए द्रोणागिरी पर्वत की और गये तब उन्हें रास्ते में कालनेमि राक्षश ने साधु के बेष बदल के हनुमान जी को रोका। (कालनेमि राक्षश रावण के द्वारा भेजा गया राक्षस था) जिसका हनुमान जी ने वध कर द्रोणागिरी पर्वत पहुंचे तो हनुमान जी को संजीवनी बूटी की पहचान नहीं हुई तो हनुमान जी ने द्रोणागिरी पर्वत का एक भाग को उठाया पुनः वापस लौटने लगे।
जब हनुमान जी संजीवनी बूटी लेके वापस लोट रहे थे तब उनके मन में अयोध्या देखने की इच्छा जागृत हुई लौटते वक्त हनुमान जी अयोध्या के आकाश से गुजर रहे थे तब भरत जी ने यह नजारा देखा की एक वानर विशाल पर्वत लेके अयोध्या की ओर जा रहा है तो उन्हें लगा की कोई राक्षश है जो की अयोध्या की तरफ जा रहा है तब भरत जी ने शत्रु समज के हनुमान जी पर वार किया किसके कारण हनुमान जी निचे गिर पड़े और हनुमान जी राम नाम का जाप कर रहे थे
तब भरत जी ने यह सुना और हनुमान जी के पास पहुंचे और पूछा आप कोन हो तब हनुमान जी ने अपना परिचय दिया और बताया की यह पर्वत क्यों ले जा रहे है हनुमान जी के बताने के बाद भरत जी पछताये व रोए तथा हनुमान जी से क्षमा मांगी इसके बाद हनुमान जी पुनः उठे और पर्वत को लेके श्री राम के पास पहुंचे।(Hanumaan aur Bharat ka milaap)
नंदीग्राम अयोध्या।
अयोध्या से नंदीग्राम की दुरी 22.5 KM है जोकि NH330 हाईवे पर है अयोध्या से नंदीग्राम पहुंचने में 40 मिनट लगती है नंदीग्राम में एक मंदिर है जहा पर हनुमान भरत मिलाप मूर्ति व चरण पादुका रखी हुई उस मंदिर का नाम योगिराज भरत हनुमान मिलाप नंदीग्राम भरतकुंड अयोध्या के नाम से प्रसिद्ध है यह वही नंदीग्राम है जहाँ भरत जी ने चरण पादुका रख कर 14 वर्ष का वनवास बिताया था जहाँ गुफा में आज भी भगवान श्री राम की चरण पादुका रखी हुई है और नंदीग्राम में ही सब से पहले हनुमान जी से भरत जी मिले थे।